थैना महासू-चालदा जागड़ा पर्व

"कुंडा हनोल भिंडा थनोल" अथार्त जौनसार-बावर के सिद्धपीठ श्री महासू देवता मंदिर हनोल के बाद थैना स्थित महासू व चालदा देवता मंदिर का स्थान दूसरे नंबर है। आस्था के प्रतीक थैना के प्राचीन महासू व चालदा देवता मंदिर में हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष गणेश चतुर्थी के उपलक्ष में जागड़ा पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। मेले को देखते हुए मंदिर के कारसेवकों ने परंपरागत गाजे-बाजे के साथ मंदिर के पास कुंगयाणी (देव फूलवाड़ी) की खुदाई व साफ-सफाई की जाती है। इसके बाद मंदिर के कारिदों ने ग्रामीणों के लिए विशेष भोज की व्यवस्था कर प्रसाद वितरण किया जाता है। देव पर्व जागड़ा मे दियाड़ों का नाच-गाना होता है, दूसरे दिन जौनसार के 24 खतों के ठाणी मंदिर में एकत्र होते है, तीसरे दिन क्षेत्रीय लोग (खत पंजगांव) देवता के मंदिर प्रांगण में रात्रि जागरण करेंगे, चौथे दिन देवता के शाही स्नान होगा। इस दिन श्रद्धालुओं की सुविधा को विशाल भंडारे की व्यवस्था भी होती है। थैना मंदिर में देव फुलवाड़ी की खुदाई के साथ जागड़े पर्व का आगाज होते ही लोगों ने घरों की साज-सज्जा करनी शुरू कर दी है।

मंदिर : महासू देवता मंदिर ग्राम थैना 
देवता : बोठा महासू महाराज और गढ़ चालदा महासू महाराज जी 
स्थान :  ग्राम थैना तहसील कालसी जनपद देहरादून प्रदेश उत्तराखंड भारत पिन कोड 248158 
चित्र 1: यह हनोल मंदिर है जो की बोठा महाशु महाराज को समर्पित है। हणोल गांव ,जौनसार बावर, उत्तराखंड में स्थित यह मंदिर हूण स्थापत्य शैली का शानदार नमूना हैं व कला और संस्कृति की अनमोल धरोहर है।

चित्र 2: यह थैना मंदिर(सत्र 2000 से पूर्व) है जो की बोठा महासू महाराज और गढ़ चालदा महासू महाराज को समर्पित है।

चित्र 3: यह थैना मंदिर(सत्र 2000 के बाद) है। 

चित्र 4: जागड़ा पर्व पर थैना मंदिर प्रांगण में पालकी नाचते श्रद्धालु गण । 

चित्र 5: थैना मंदिर पुननिर्माण, जौनसार बावर के लोक देवता महासू देवता से भी जुडी हुई कथा इस प्रकार से है की राक्षसी प्रवृति के राजा सामुशाही का वध बहुत ही विचित्र तरीके से किया था। सामुशाही दैन्त्य के बारे में यहाँ प्रचलित है कि वह औरतों का स्तन पान करता था और जिस औरत का भी बच्चा जन्म लेता वह राजाज्ञा से उस औरत के स्थनों पर चमड़े का पट्टा लगवा देता ताकि उसका बच्चा उसका दूध न पी सके ऐसे में बच्चे मरने और कुपोषण का शिकार होने लगे और वंश दर वंश मिटता देख इस क्षेत्र के चार चौन्तरू देवता के दरवार हनोल पहुंचे और देवता ने उनकी फ़रियाद सुनकर थैना गाँव पहुँचने के बाद राजा सामुशाही दानव के नाक में पेड़ उगाने लगे और उसे उन्होंने बहुत कष्टप्रद मौत दी। ऐसा यहाँ की लोक गाथाओं जागरों में भी वर्णित है। 

थन्यवाद। 

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